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Wednesday, 30 January 2019

दार्जलिंग और सिक्किम यात्रा - भाग 10

अंतिम किस्त 


दिनांक 01.06.2018
12:30 बजे हमलोगों ने होटल से चेक आउट किया और दो लोकल टैक्सी से गंगटोक टैक्सी स्टैंड पहुँचे, यहाँ हमें न्यू जलपाईगुडी के लिए टैक्सी काउन्टर से 3500 रूपये की बोलेरो मिल गई, गंगटोक से न्यू जलपाईगुडी के लिए बस भी आसानी से मिल जाती है, पर हमें 8-9 सीटों की जरूरत थी और एक घंटे बाद जाने वाली बस में इतनी सीट उपलब्ध नहीं थी. उसके लिए हमें कम से कम दो-ढाई घंटे बैठना पड़ता. वैसे हमें गाडी बुक करने के बाद भी आधे घंटे से ज्यादा इंतजार करना पड़ा. हमें जो बोलेरो मिली वो बस अभी-अभी दार्जिलिंग से आई थी. सारा सामान ऊपर डालकर उसे ढककर बँधवाया, क्योकिं आते वक्त मैंने ध्यान नहीं दिया था और ड्राईवर महोदय ने ठीक से ढका नहीं था, जिसकी वजह से हमारा सामान थोड़ा गीला हो गया था. हम अपने यात्रा को समाप्त कर वापसी पर थे, लगभग 1:30 मिनट पर हमलोगों ने गंगटोक को अलविदा कहा और न्यू जलपाईगुडी की ओर चल पड़े. गंगटोक को ठीक से न देख पाने  का मलाल दिल में लिए, फिर आने का वादा खुद से करता मैं गुमसुम सा बैठा था. सिक्किम में टूरिस्ट स्पॉट की कोई कमी नहीं, जिसके लिए दुबारा तो आना ही पड़ेगा. काफी समय बाद मुझे पता चला कि अरे सब से सब चुपचाप हैं. ऐसा हमेशा होता है- जब हम यात्रा से वापसी करते हैं तो थोड़ी उदासी तो होती ही है. रास्ते में ऊँचे पहाड़ों और घने जंगलों के बीच से जाता रास्ता मनमोहक और अदभुत था.

एक जगह खाने की स्टोपेज के बाद हम लगभग 6 बजे न्यू जलपाईगुडी पहुँचने वाले थे कि मॉनसून न आहट दी, जिसकी वजह से मूसलाधार बारिस शुरू हो गई. स्टेशन के बाहर पानी लबालब भर चुका था और हमें भी बारिस में भींगते हुए समान लेकर उतरना पड़ा.

हमारी ट्रेन रात्रि 10:45 बजे थी, ट्रेन आने के पहले हमने स्टेशन पर ही बने फ़ूड प्लाजा में खाना खाया. खाना ठीक ही था और साफ-सफाई का कोई जवाब ही नहीं. ट्रेन आधे घंटे लेट आई. हम सब ट्रेन में सवार हो गए, पता चला ट्रेन में काफी वेटिंग चल रही है. हमारे सीट पर भी कई जवान बैठे थे, जिन्होंने एक बार ही बोलने के बाद सीट हमें सौप दी. हमारे पास कोई विकल्प ही नहीं था कि हम सीट शेयर कर सकते. एक तो रात्रि का समय और दुसरा हमारी सारी सीट उपर की थी. खैर, जवानों ने इधर-उधर किसी तरह एडजस्ट किया, पर सच पूछिए तो दिल से बहुत ही बुरा लग रहा था. पर हमारे साथ भी छोटे चार-चार बच्चे थे तो कोई रास्ता भी न था. हमारे भागलपुर होकर जाने वाली ब्रह्मपुत्र मेल में जवानों को आते-जाते बचपन से देखता रहा हूँ. काफी देर तक दिल भारी-भारी सा रहा, पर खुद को लाचार महसूस करता रहा. छोटे राजकुमार को लेकर साइड अपर सीट पर एडजस्ट भी नहीं कर पा रहा था. काफी देर तक करवट बदलता रहा और कब नींद आ गई पता ही नहीं चला.

नींद खुली तो ट्रेन की स्टेट्स देखा, ट्रेन डेढ़ घंटे ही लेट चल रही थी और एक घंटे में हम अपने गंतव्य स्टेशन पर पहुँच जाने वाले थे. ब्रह्मपुत्र मेल के लिए डेढ़ घंटे लेट होना कोई बड़ी बात नहीं थी, ये ट्रेन अपने लेट-लतीफी के लिये बदनाम है. बरसात में तो यह असम की बाढ़ की वजह से 24 घंटे से भी ज्यादा लेट चलती है. साइड अपर सीट पर रात छोटे बेटे के साथ किसी तरह गुजरी, शरीर अकड सा गया एक ही साइड करवट लेटे-लेटे. नीचे उतर कर शरीर सीधा किया और सबको जगाया. थोड़ी देर में हम भागलपुर स्टेशन पर थे, ट्रेन मात्र एक घंटे लेट थी. इस तरह हमारा दार्जिलिंग और सिक्किम का सफर यादों के झरोखों में एक शिलालेख की तरह अंकित हो गया. हम ऑटो से अपने घरोंदे की और बढ़ रहे थे और मनवा बेपरवाह अभी भी दार्जिलिंग और सिक्किम की वादियों में ही स्वछंद उड़ान भर रहा था.

आपलोगों का आभार, मेरी इस यात्रा में मानसिक रूप से साथ रहने के लिए. अगली यात्रा तक के लिए स्वस्थ रहिये, मस्त रहिये और यायावर मन को यायावरी कराते रहिये.


इस यात्रा में लिये गए कुछ चुनिन्दा फोटो →






















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