नैनीताल यात्रा भाग – २
आखिर गर्मी की छुट्टियों का दिन आ गया, गर्मियों की छुट्टियों मतलब बच्चों के घुमक्कडी का सबसे बेहतरीन समय. सूर्यदेव के कहर से लोग त्राहिमाम कर रहे थे और हम नैनीताल के लिए निकल रहे थे. हम पहले भागलपुर (लूप लाइन पर स्थित) से किउल (कोलकत्ता-दिल्ली मेन लाइन) रात्रि 02:45 बजे फरक्का एक्सप्रेस से पहुंचे, जो लगभग 100 किलोमीटर दूर था. रात्रि की यात्रा थी, इसलिए इसमें भी हमें आरक्षण करवा रखा था. ढाई घंटे इंतजार के बाद किउल से सुबह 05:15 बजे बाघ एक्सप्रेस से, नैनीताल के सुहाने सफर पर निकल पड़े. भागलपुर से नैनीताल की यात्रा 1230 किलोमीटर लंबी थी.
ट्रेन का सफर, घर के बने पराठे-सब्जी, लिट्टी, चुडा-छोले, मिठाई, कुकीज और स्पेशल केक और न जाने क्या-क्या खाते-सोते और ट्रेन की खिडकी से तेजी से भागते दृश्यों को देखते बीता. हाँ, साथ ही छोटे कुमार के कई उलझे-सुलझे सवाल भी थे- “पापा, नैनीताल काली पहाड़ जैसा जितना ऊँचा और बड़ा होगा न? मम्मी तो बहुत सारा सामान ले ली है, हमलोग पहाड़ पर इतना सामान लेकर कैसे चढेंगे?”
Read Lake City Nainital - 1: तालों का शहर नैनीताल – Lake City Nainital
चार साल के छोटे कुमार दार्जिलिंग, सिक्किम तो घूम ही चुके, तीन साल की उम्र में दो बार मंदारहिल की लगभग दो किलोमीटर की ट्रेक के साथ राजगीर के पहाड़ी की ट्रेक भी छः साल के बड़े भाई के साथ कर चुके. पर उनकी नजर में नानाजी के शहर जमालपुर की काली पहाड़ सबसे ऊँची है. आपलोगों को फिर कभी जमालपुर के बारे में भी बताऊंगा.
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काठगोदाम रेलवे स्टेशन |
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काठगोदाम रेलवे स्टेशन के बाहर का दृश्य |
सुबह
हल्द्वानी पहुँचने पर अपना सामान समेटा, आधे घंटे लेट होकर ट्रेन 10 बजे काठगोदाम स्टेशन पर खड़ी थी. स्टेशन से
बाहर टैक्सी वालों की मनमानी देख लगा, बेहतर होता हल्द्वानी ही उतर जाता.
हल्द्वानी स्टेशन से बाहर ही नैनीताल के लिए टैक्सी, शेयर टैक्सी, बस आसानी से मिल
जाते हैं. काठगोदाम स्टेशन से मुख्य मार्ग थोड़ी दूर है, अगर बस लेना हो तो सामान
लेकर सड़क तक जाना मुसीबत है. खैर, एक टैक्सी ली और चल पड़े अपने सपनों के मंजिल की
ओर, काठगोदाम से
नैनीताल लगभग 35 किलोमीटर
की दुरी पर है. सपनों ने अपने पुरे पंख फैला दिए और सपनों की उड़ान के बीच बच्चों
की हंसी-ठिठोली और वादियों का अनुपम सौंदर्य एक अनोखा एहसास दिला रहा था.
पहला
पड़ाव था- पकोड़े और चाय की दुकान. पर चाय किसी को पीनी नहीं थी तो सिर्फ गर्मागर्म
पकोड़े लेकर चल पड़े. पकोड़ों का स्वाद हमने खूबसूरत वादियों के साथ गाड़ी में ही
लिया. दुकान पर देखा था हमारे आगे जाने वाली गाड़ी की महिलाएं नीबूं काटकर उसपर नमक
लगाकर चाट रही है, तो पता चल गया आगे पहाड़ों पर होने वाला उबकाई, चक्कर का समय आने
वाला है. रास्ते में श्रीमतीजी को थोड़ी उबकाई आई तो हमने गाड़ी को साइड में रुकवाई
और थोड़ी देर रूककर नजारों का आनन्द लिया. बच्चों को चाकलेट और हमने हाजमोले का
चटकारा ले लिया, ताकी रास्ते में और उबकाई
न आये. जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, गर्मी कम होती जा रही थी और हवा में ठंडक और ताजगी
बढती जा रही थी. पुरे रास्ते हमारी नजर गाड़ी की खिडकी के बाहर के
नजारों-पहाड़ों-खाइयों को ही देखती रही. मुड़ती सड़क पर जब गहरी खाइयाँ दिखती तो जान
हलक में आ जाती, छोटे कुमार जो मेरे साथ आगे की सीट पर जमे थे डर के मारे पीछे की
सीट पर भाग लिए और अगली सीट खाली होते ही बड़े कुमार आ जमे थे मेरी गोद में.
वादियों
में कुछ घर दिखने लगे थे, हमने अंदाजा लगाया कि हम नैनीताल पहुँच गए. बस स्टैंड से
आगे बढते ही नैनी झील दिखने लगी. वाह क्या नजारा था, तीनों ओर से पहाड़ों से घिरा
बीच में बेहद खूबसूरत झील. झील में तैरते बोट को देख बच्चों का हर्ष चरम बिंदु पर
था और वो तो जैसे गाड़ी से कूद ही पड़ते. सामने दो सुन्दर और साफ-सुथरी सड़क नजर आ
रही थी, जो वन-वे थी. मतलब जाने और आने के लिए अलग-अलग सड़क, यही नैनीताल का प्रसिद्द
मॉल रोड था, जिसने जाने कितने लेखकों, कवियों और शायरों को अपना दीवाना बनाया. तीनों
ओर की पहाड़ियों पर सैकड़ों होटल के साथ ही लोगों के घर भी थे. पैदल चलने के लिए झील
के साथ-साथ सुंदर रास्ता बना था. मॉल रोड के निचले रोड पर थोडा आगे जाकर ड्राईवर
ने एक जगह गाड़ी रोक दी और सामने लगे बोर्ड की ओर इशारा किया- “वो सामने रहा आपका गेस्टहाउस”. बोर्ड तो हमें भी दिख रहा था, सो बोरिया-बिस्तर
लेकर कूद पड़े.
हमें
क्या पता था आते ही हमारा एडवेंचर शुरू होने वाला है, हम दोनों सड़क को पार कर
बोर्ड वाले जगह पहुंचे तो वो सड़क दूर तक बिलकुल ऊंचाई पर जाती दिख रही थी. ऊपर
जाती सीधी सड़क को देख कर ही गला सुख गया. चढ़ना तो था ही चाहे जैसे चढ़े, सीधी सड़क पर
सामान के साथ चढ़ते दम निकल गया, हमारे साथ बच्चे भी हांफ रहे थे. गिरते-पड़ते ऊपर पहुँच
कर बड़ी सी पार्किंग में खड़ी गाड़ियों को देखा तो अनायास ही ड्राईवर की धूर्तता पर दिमाग
उबल पड़ा और ड्राईवर के लिए दो-चार गालियाँ निकल पड़ी. ऊपर पहुँच कर दस मिनट बाद ही
जान-में-जान आई, उसी समय एक गाड़ी ऊपर आई, तो फिर ड्राईवर को दो-चार दे डाली.
हमलोग
नैनीताल पहुँचते ही जिस ड्राईवर की चालाकी का शिकार हुए, उस गाड़ी को आप भी देख लो.
जब भी नैनीताल जाओ, इस गाड़ी में भूल कर भी मत बैठना. ऐसे लोग ही पर्यटन स्थल का
नाम बदनाम करते हैं, जब पैसे पुरे लिए पहुँचाना भी बिलकुल सही जगह पर था.
जब होशो-हवास
वापस आया तो गेस्टहाउस की लोकेशन और वहाँ से दिखते शानदार नजारों ने मोहित कर
दिया. सामने बड़ी सी पार्किंग, दो मंजिले गेस्टहाउस में उपरी मंजिल की छत लकड़ी की
बनी थी, जो बेहद खूबसूरत दिख रही थी. कमरे के सामने नजारों का आनन्द लेने के लिए बरामदा,
कुल मिलकर गेस्टहाउस सबको पसंद आया. सामान
एक जगह रख स्वागतकक्ष जाकर अपने आगमन की सूचना दी और औपचारिकता पूरी
की, दो लड़कों को रूम
की सफाई के लिए साथ भेजा गया. हमारा कमरा दूसरी मंजिल पर था, जो पहले से ही हमारे
नाम आरक्षित था. बरामदे से सामने नैनी झील और पहाड़ का बेहतरीन नजारा दिख रहा था.
सफाई के
बाद कमरे में सामान जमाया और थोडा आराम करने के बाद स्नान कर आसपास विचरण करने और लंच
करने के विचार से निकलने वाले थे कि मेघराज ने गरजना शुरू कर दिया. गेस्टहाउस में
ब्रेकफास्ट और डिनर प्री-आर्डर पर ही बनता है, दिन में गेस्ट रहते नहीं तो खाना भी
नहीं बनता. हम इंतजार करते रहे कि शायद बारिस रुके और हमें कमरे से निकले पर मेघ
गरजते-बरसते रहे. आखिर में अपने पास उपलब्ध खाने-पीने के सामान से ही पेट पूजा की
और बरामदे से काफी देर तक बारिस में झील और पहाड़ों की खूबसूरती को निहारता रहा. मैं
सिर्फ हाफ टी-शर्ट में था, ठण्ड के मारे कपकपी छुट रही थी. रात के खाने का आर्डर
लेने वाले लड़के ने बताया बारिस तीन दिनों से हो रही है, जिसके वजह से ठण्ड काफी बढ़
गई है.
दरबाजे
पर दस्तक से नींद खुली, गर्मागर्म डिनर हाजिर था. घडी देखी तो रात के दस बज रहे थे.
हमलोग घर में रात्रि का खाना सात बजे तक खा लेते हैं, पर यहाँ इतनी देर हो गई. कल
से खाना थोडा पहले देने को बोल पेट में उछलते-कूदते चूहों को शांत किया. कपकपाती
ठण्ड में गर्मागर्म तवा रोटी के साथ मटर-पनीर और अरहर दाल का तड़का खाकर जो आनन्द
और तृप्ति मिल रही थी, उसे बयां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. खाना-खाकर
बरामदे से मौसम का जायजा लिया, बारिस फिर शुरू हो गई थी.
आखिर और कोई उपाय न देख हम अपने “अजगर और गैंडे की तरह पड़े रहने वाले” मिशन पर लग गए और मोटी-मोटी रजाई में घुसकर लंबे हो गए.
आज नैनीताल में होकर भी नैनीताल न देख पाने का मलाल दिल में लिए, न मालूम कब नींद के अपने आगोस में चले गए.
आप भी सो जाओ, आगे फिर अगली किस्त में.
शुभ रात्रि.
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